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buddha stories in hindi |
आत्म जागरूकता क्या है
एक बार एक युवक महात्मा जी से पूछता है कि महात्मा जी होश क्या है और जागरूकता क्या है और हम लोग इसे अपने जीवन में कैसे ला सकते हैं ? महात्मा उस युवक से कहते हैं मैं तुम्हें एक छोटी सी घटना बताता हूं जिससे तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा ।
एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को प्रवचन दे रहे थे, और महात्मा बुद्ध के सभी शिष्य बड़ी श्रद्धा से बुध का प्रवचन सुन रहे थे । लेकिन महात्मा बुद्ध के बिल्कुल सामने वाली लाइन में बैठा हुआ एक शिष्य बुद्ध को सुनने के समय अपने पैर का अंगूठा हिला रहा था । जैसे ही महात्मा बुद्ध की नजर उस शिष्य के ऊपर पड़ती है तो बुद्ध बोलते बोलते अचानक चुप हो जाते हैं ।
महात्मा बुद्ध के इस तरह से एकदम चुप हो जाने से सभी शिष्य चौकते हैं । जो शिष्य अपने पैर का अंगूठा हिला रहा था, महात्मा बुद्ध उस शिष्य से पूछते हैं कि तुम अपने पैर का अंगूठा क्यों हिला रहे हैं ? जैसे ही वह शिष्य महात्मा बुद्ध के वचनों को सुनता है, वह शिष्य अपने पैर का अंगूठा हिलाना बंद कर देता है । और महात्मा बुद्ध से कहता है कि बुद्ध आपके वचन और आपका समय यह दोनों ही बहुत कीमती है, इसलिए आप इस तरह की छोटी-छोटी बातों पर ध्यान मत दीजिए, और वैसे भी मैं आपका प्रवचन सुन तो रहा था, तो इस बात से फर्क क्या पड़ता है कि मेरे पैर का अंगूठा हिल रहा था, या नहीं ?
आत्म जागरूकता क्या है
तब महात्मा बुद्ध उस शिष्य से पूछते हैं कि क्या तुम अपने पैर का अंगूठा जानबूझकर हिला रहे हो? वह शिक्षा बुद्ध से कहता है कि नहीं बुद्ध, मुझे तो पता ही नहीं चला कि मेरे पैर का अंगूठा हिल रहा है यह बात तो मुझे अब पता चली है । महात्मा बुद्ध कहते हैं फिर यह छोटी बात नहीं है,। क्योंकि अगर तुम्हारे पैर का अंगूठा बिना तुम्हारी मर्जी से हिल सकता है, तो तुम्हारा मन भी तुमसे बिना तुम्हारी मर्जी से कुछ भी करवा सकता है और यही कारण है कि व्यक्ति ऐसे पाप और दुष्कर्म कर देता है की जिन्हें करने के बारे में वह व्यक्ति कभी सोच भी नहीं सकता था ।
उसके बाद वह शिष्य महात्मा बुद्ध कहता है बुद्ध मुझे क्षमा कीजिए और जिसे मैं छोटी सी समस्या समझ रहा था, असल में यह तो बहुत बड़ी समस्या है । कृपा करके आप मुझे बताएं कि इस बड़ी समस्या से छुटकारा कैसे पाया जा सकता है ? महात्मा बुद्ध कहते हैं होश के द्वारा और जागरूकता के द्वारा...वह शिष्य महात्मा बुद्ध से पूछता है कि होश क्या है ?
महात्मा बुद्ध जवाब देते हैं कि होश का मतलब है जागकर देखना, क्या तुमने यह ध्यान नहीं दिया कि तुम्हारे पैर का अंगूठा हिल रहा था लेकिन जैसे ही तुम्हारा ध्यान उस पर गया, वह एकदम हिलना बंद हो गया । पूरे दिन में जब भी याद आए अपने आप को जागरूक रखो और देखो तुम क्या कर रहे हो और क्यों कर रहे हो ? तुम्हें बेहोशी की हालत में जीने की आदत है इसलिए तुम बार-बार होश खो देते हो, लेकिन तुम्हें बार-बार अपने होश को वापस लाना है और धीरे-धीरे तुम महसूस करोगे कि तुम्हारे अंदर एक ऐसा जागरण पैदा हो रहा है जिसे बेहोशी में बदलने का कोई उपाय नहीं है ।,
उसके बाद वह महात्मा उसी युवक से पूछते हैं कि तुम्हें इस घटना से क्या समझ आया ? वह युवक कहता है कि होश का मतलब है खुद को देखना । अगर हम लगातार जागरूक रहने का प्रयास करते हैं, तो हमारे अंदर एक ऐसा जागरण पैदा होगा, जिसे बेहोशी में बदलने का कोई तरीका नहीं है । फिर वह महात्मा उस युवक से कहते हैं कि शुरू शुरू में जबरदस्ती जागरूक रहो और बाद में जागरूकता तुम्हारा स्वभाव बन जाएगा ।
शिक्षा : दोस्तों महात्मा बुद्ध की इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपनी असली पहचान करनी है अगर हम अपनी असली पहचान कर पाए तो कभी भी जीवन में गलत काम नहीं करेंगे ।
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